विश्वामित्र वशिष्ठ इतना ध्यान व तप क्यों करते थे जब कि ध्यान समाधि जैसी अवस्था 45 मिनिट में पाई जा सकती है ?


यहां हमें कुछ आध्यात्मिक तथ्यों को भलीभांति समझना होगा –

 

1.. समाधि की अंतिम अवस्था निर्विकल्प समाधि कहलाती है | निर्विकल्प समाधि की स्थिति तक पहुंचने के लिए ब्रह्म ने मनुष्य रूप में 11 लाख योनियों का प्रावधान रक्खा है | निर्विकल्प समाधि में पहुंचने के बाद और कुछ प्राप्त करना शेष नहीं रहता | निर्विकल्प समाधि में स्थित साधक अंततः तत्वज्ञानी बन मोक्षगामी हो जाता है यानि जन्म और मृत्यु के बंधन से हमेशा के लिए छुटकारा |

 

2.. जब तक साधक खुद निर्विकल्प समाधि की स्थिति में नहीं पहुंच जाता – वह एक आध्यात्मिक गुरु बनकर ज्ञान बांटने के लिए सक्षम नहीं | ऐसा महावीर कहा करते थे – पहले तत्वज्ञानी बनो फिर ज्ञान बांटों |

 

3.. महर्षि विश्वामित्र और वशिष्ठ के समय में भगवद प्राप्ति के लिए तपस्या में लीन होने के लिए हिमालय की कंदराओं में जाना लगभग अनिवार्य था | गहन समाधि की अवस्था घर में, समाज के बीच रहकर प्राप्त करना असम्भव सा था | तत्वज्ञान प्राप्त करने के लिए ब्रह्मचर्य और ध्यान की 12 वर्ष की अखंड तपस्या अपेक्षित है |

 

4.. जिस अवस्था को प्राप्त करने के लिए खुद ब्रह्म ने 1 करोड़ वर्ष का समय (मनुष्य रूप में 11 लाख योनियों का चक्र) निर्धारित किया है वह अवस्था कुछ मिनटों, दिनों या सालों में कैसे आ सकती है ? हां ! अगर साधक महर्षि रमण या रामकृष्ण परमहंस का जुनून रखता हो तो इसी जन्म में कैवल्यज्ञानी बन मोक्ष प्राप्त कर सकता है |

 

ब्रह्मनुसार धरती पर स्थित हर मनुष्य को ब्रह्म को इसी जन्म में प्राप्त करने की सुविधा हमेशा से उपलब्ध है – बिना किसी रोक टोक या बंधन के | हर मनुष्य will power का इस्तेमाल कर ब्रह्म तक पहुंचने की क्षमता रखता है – बशर्ते वह ब्रह्म में पूर्ण आस्था रखता हो और 12 वर्ष अखंड साधना में उतरने की क्षमता !

 

12 years Tapasya | 12 साल की घोर तपस्या का सच | Vijay Kumar Atma Jnani

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