स्वयं को शुद्ध करने के लिए आत्मा एक के बाद एक शरीर धारण करती रहती है | आत्मा तो एक मूक दृष्टा की भांति रहती है, खुद कुछ नहीं करती, शरीर को काम करने के लिए प्रेरित करती रहती है |
कर्म मनुष्य करता है – अच्छा या बुरा | ब्रह्म ने मनुष्य को will power और विवेक दिया है जिसका इस्तेमाल कर मनुष्य सार्थक जीवन जी सकता है | अगर मनुष्य बुरे कार्यों में लिप्त हो जाए तो इसमें आत्मा का कोई दोष नहीं |