सिर्फ मरना ही नहीं बल्कि दोबारा जन्म भी नियति है और यह क्रम तब तक चलता रहेगा जब तक आत्मा में अशुद्धियों का लेशमात्र भी अंश बाकी है | जैसे ही आत्मा पूर्ण शुद्धि पा लेती है वह इस जन्म और मृत्यु के चक्रव्यूह से हमेशा के लिए मुक्त हो जाती है |
आत्मा न तो पैदा होती है न मरती है – जन्म और मृत्यु से तो शरीर जुड़ा है | कर्मों की निर्जरा के लिए आत्मा एक के बाद एक शरीर धारण करती रहती है | हम मनुष्य धरती पर सबसे उच्च योनि में स्थापित हैं |
अगर हम इस जन्म और मृत्यु के क्रम को अस्त करना चाहते हैं तो अध्यात्म के मार्ग पर चलकर, 12 वर्ष की अखंड तपस्या में उतरकर तत्वज्ञानी बनना ही होगा | तभी हम एक शुद्ध आत्मा बन मोक्ष द्वार तक पहुंचेंगे |
What is the main Purpose of Life? मानव जीवन का मकसद | Vijay Kumar Atma Jnani