आत्मा का पुनर्जन्म कैसे होता हैं ?


वेदों में, उपनिषदों में और भगवद गीता में कहीं भी आत्मा के पुनर्जन्म का उल्लेख नहीं | आत्मा वह दिव्य स्वरूप, शक्ति, चेतना है जो हमेशा से सूर्य के गर्भ में स्थित है | एक आत्मा का ताप करोड़ों degrees centigrade होता है जिस कारण सूर्य के गर्भ में हजारों atomic explosions हर समय होते रहते हैं | अगर सूर्य तापविहीन हो जाए धरती बंजर हो जाएगी – बिना किसी जीवन के | हर आत्मा सूर्य में स्थित रहकर remote द्वारा शरीर का संचालन करती है |

 

जब शरीर की उम्र (वक़्त) पूरी हो जाती है तो मैचिंग पैरेंट्स के यहां आत्मा नया जीवन शुरू कर देती है | इसे ऐसे समझें – हम खिलौनों की दुकान से एक remote से चलने वाला रोबोट लाए | जब वह रोबोट पुराना हो गया या खराब हो गया तो हम उसमे से सिर्फ batteries निकाल दूसरे नए रोबोट में डाल देंगे | यहां पुनर्जन्म किसका हुआ – किसी का भी नहीं | Batteries वहीं पुरानी लेकिन शरीर नया मिल गया | Batteries यानी remote से ON OFF होने वाला system |

 

(Matching parents कौन होंगे यह तय करता है कार्मिक इंडेक्स का बैलेंस | मनुष्य का मृत्यु के समय जो कार्मिक शेष है वह तय करता है नया शरीर कहां और किस घर में मिलेगा) |

 

चूंकि कोई भी आत्मा स्वयं से खुद की शुद्धि नहीं कर सकती, वह शरीर धारण करती है यह करने के लिए | और इस कार्य में कर्म theory उसकी मदद करती है |

 

भगवद गीता में इस बात पर तूल दिया जाता है कि आध्यात्मिक साधक को अपनी मैं पर कंट्रोल स्थापित कर उसे जड़ से खत्म करना होता है | तभी हम अपनी आत्मा को पहचान पाएंगे | अहंकार से भरा साधक आध्यात्मिक हो ही नहीं सकता | आजकल यही हो रहा है जिस कारण ज्यादातर साधक हर समय असमंजस की स्थिति में रहते हैं | आत्मा को पहचानना है, खुद को जानना है तो अपनी मैं को तो मारना ही पड़ेगा हमेशा के लिए |

 

वजह साफ है – असल जिंदगी में रोबोट का तो कोई अस्तित्व ही नहीं | आत्माओं के लिए मनुष्य शरीर मात्र एक medium, साधन है खुद की शुद्धि के लिए | इसलिए मनुष्य की मैं को हमेशा के लिए मरना ही होगा |

 

आत्मा सिर्फ manifest करती है एक के बाद दूसरा शरीर – जब तक अशुद्धियां पूर्ण रूपेण खत्म न हो जाएं |

 

1.1 million manifestations in Human form? मनुष्य रूप में ११ लाख योनियों का सफर | Vijay Kumar

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