क्या सेक्स अध्यात्म और आत्मज्ञान के मार्ग में बाधा है ?


Physical ब्रह्मचर्य की प्रैक्टिस कैसे करेंगे अगर हमारी बाल्टी में छेद रहेगा ? जब तक मूलाधार में अमृत लबालब नहीं होगा कुण्डलिनी ऊर्ध्व नहीं होगी और चक्र नहीं खुलेंगे | अगर हम मूल्यवान अमृत (वीर्य) को यूं ही क्षणिक आनंद के लिए सेक्सुअल क्रियाओं में जाया कर देंगे तो पशु योनि और मनुष्यों में फर्क क्या रह जाएगा – दोनों भोग योनि हो जाएंगी ?

 

हम मनुष्यों की अपनी आत्मा के प्रति भी कोई जिम्मेदारी है – यह मनुष्य शरीर आत्मा ने किसी प्रयोजन से धारण किया है | ठीक है कि मनुष्य रूप में 11 लाख योनियां हैं – तो जैसी आपकी मर्ज़ी !

 

आध्यात्मिक सफर में हमें 12 वर्ष की ध्यान और ब्रह्मचर्य की अखंड तपस्या में उतरना होता है – तो हम कैसे सेक्स में उलझ सकते हैं ? बिना ब्रह्मचर्य के पालन के कुण्डलिनी का पूर्ण जागरण संभव ही नहीं | फिजिकल ब्रह्मचर्य तो मात्र 5% ही समझिए – 95% ब्रह्मचर्य तो mentally (मानसिक रूप में) करना होता है जो अत्यंत कठिन है |

 

आचार्य रजनीश के लिए आत्मज्ञान प्राप्त करना कठिन नहीं था लेकिन जीवन के अंतिम चरण में महर्षि विश्वामित्र के अनुयाई हो गए – गोरी मेमों के बीच US में प्रवास और ऊपर से लिख दी पुस्तक – संभोग से समाधि की ओर |

 

12 years Tapasya | 12 साल की घोर तपस्या का सच | Vijay Kumar Atma Jnani

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