इस ब्रह्माण्ड (सृष्टि) की रचना में सिर्फ और सिर्फ सृष्टि के निर्माता ब्रह्म का हाथ है | ख्याल करके देखें – प्रलय के समय जब पूरा ब्रह्माण्ड सिमट कर आधे अंगूठे (अस्थ अंगुष्ठ) के आकार में आ जाता है तो उस समय ब्रह्म (भगवान) के अलावा और किसका अस्तित्व है – किसी का नहीं | इसी आधे अंगूठे के आकार को भारतीय शास्त्रों में भगवान, ब्रह्म की उपाधि दी गई है |
पूर्ण शुद्ध अवस्था प्राप्त ब्रह्म स्वयं को इस अवस्था में एक क्षण के लिए भी रोक नहीं पाते और Big Bang के द्वारा प्रस्फुटित होते हैं और सृजन (निर्माण) होता है एक नए ब्रह्माण्ड का | तो वह ब्रह्म ही हैं जिनके प्रस्फुटन से ब्रह्माण्ड उत्पन्न होता है | और ब्रह्म क्या हैं – ब्रह्माण्ड में व्याप्त सभी आत्माओं का गुच्छा | नए ब्रह्माण्ड के उत्पन्न होने के साथ साथ सारी आत्माएं पूरे ब्रह्माण्ड में फ़ैल जाती हैं – इसलिए कहते हैं कण कण में भगवान व्याप्त हैं |
भारतीय परिवेश में इस बारे में बिल्कुल भ्रांति नहीं कि ब्रह्म कौन हैं और कैसे ब्रह्मांड उत्पन्न करते हैं – कोई भी आध्यात्मिक साधक चिंतन के माध्यम इस शाश्वत सत्य को, इस तत्व को उपनिषदों में पढ़/ देख सकता है | भारतीय ग्रंथों में शंका करने की लेशमात्र भी गुंजाइश नहीं है – सभी कुछ पूर्ण रूपेण स्पष्ट है | इस शाश्वत सत्य को सिर्फ सत्य के मार्ग पर चलने वाला ही देख/ परख सकता है |
What is a Pralaya in Hinduism? हिन्दू धर्म में प्रलय क्या होती है | Vijay Kumar Atma Jnani