प्रभु जिन्हें अध्यात्म ब्रह्म (ब्रह्मा नहीं) के नाम से पुकारता है को अगर हम इसी जन्म में पाना चाहते हैं तो हमे सिर्फ और सिर्फ अध्यात्म की राह पकड़नी होगी | ब्रह्म को पा लेना या प्रभु में लीन हो जाना (योग के द्वारा) ही हमारे जीवन का आखिरी और अंतिम उद्देश्य है |
प्रभु को इन संसाधनों से नहीं पाया जा सकता –
१. हम मीराबाई बन हर समय प्रभु के गुणगान, या भजन कीर्तन में जुटे रहे |
२. हम मंदिर, मस्जिद या गुरद्वारों में जाकर भगवान की पूजा, भजन कीर्तन करें |
३. हम धार्मिक गुरुओं के सतसंगों में जाएं |
४. हम यज्ञ इत्यादि में लगे रहे |
५. आश्रमों में जाकर गुरुओं आदि का सानिध्य करें, इस उम्मीद से कि कुछ भला होगा |
६. माता वैष्णोदेवी या किसी अन्य तीर्थस्थल जाकर मन्नतें मांगे |
७. हरिद्वार, हृषिकेश, बनारस, इलाहाबाद, उज्जैन, नासिक इत्यादि धार्मिक स्थलों पर जाकर समय व्यतीत करें |
८. घर में देवी देवताओं का पाठ, भजन कीर्तन करें |
९. योगासन में बैठकर भगवान को याद करें |
१०. लंगर इत्यादि धार्मिक आयोजन करें |
११. धर्म से जुड़े किसी भी कार्यक्रम को आयोजित कर गौरवान्वित महसूस करें |
१२. दान आदि देकर यह एहसास रहे आपने भगवान के लिए कुछ किया | ब्रह्म को इन सब बातों की आवश्यकता नहीं | भगवान पूजनीय हैं लेकिन प्रभु को पाने का हमारा तरीका गलत है |
१३. भक्तियोग नहीं, हमें ज्ञान मार्ग के रास्ते भगवान को पाना होगा |
१४. कर्मों को निष्काम भाव से करना होगा जिससे कर्म हमें बांधे नहीं और कर्मों की निर्जरा होती रहे |
ब्रह्म तो हमेशा से हमारे हृदय में विराजमान हैं | उन्हें ढूंढने बाहर क्यों जाना ? ब्रह्म तक पहुंचने के लिए हमें चिंतन के रास्ते ध्यान में उतरना होगा, अपने कर्मों की पूर्ण निर्जरा करनी होगी | हम एक आत्मा हैं और अपने ब्रह्मांडीय सफर में अशुद्धियों से घिर गए हैं | इन अशुद्धियों को खत्म कर अपना original स्वरूप वापस प्राप्त कर लेना ही हमारा, हमारे जीवन का अंतिम उद्देश्य है |
मनुष्य स्वरूप धरती पर उच्चतम योनि है | मनुष्य रूप में ही आत्मा अपने शुद्ध स्वरूप को वापस पा सकती है, जब साधक ध्यान के माध्यम से आखिरकार मोक्ष की अवस्था तक पहुंच जाता है | अध्यात्म की journey एक आंतरिक journey है, हृदय स्थल में बैठे ब्रह्म के अंश यानि आत्मा तक पहुंचने की |
12 years Tapasya | 12 साल की घोर तपस्या का सच | Vijay Kumar Atma Jnani