ईश्वर हमसे कितना दूर है ?


ब्रह्म स्वयं एक अस्थ अंगुष्ठ के आकार का चेतन तत्व है जो सभी आत्माओं के द्वारा पूरे ब्रह्मांड में फैला हुआ है | जहां आत्माएं वहां ईश्वर (ब्रह्म) | धरती पर व्याप्त हर जीव की आत्मा सूर्य के गर्भ में वास करती है | क्योंकि आत्मा का स्वयं का तापमान करोड़ degrees centigrade से ज्यादा होता है वे सूर्य में स्थित, remote control द्वारा धरती पर धारित शरीर को संचालित करती हैं |

 

हर तारा जो चमक रहा है, उसका तेज कहां से आता है ? हर तारे के गर्भ में आत्माओं का झुंड मौजूद है जो उसे ताप दे रहा है | काफी समय आत्माएं सूर्य के गर्भ में धृष्टा की भांति sandwitched रहीं | लेकिन जैसे ही धरती मां जैसा ग्रह बना और उस पर जीवन पनपने योग्य वातावरण बना, आत्माओं ने शरीर धारण करना शुरू किया |

 

आत्माओं ने सबसे पहला शरीर अमीबा का धारण किया और फिर उत्पत्ति आगे बढ़ती चली गई | कुछ साल पहले मुझे Delhi University के Sr Prof Sinha का email आया – लिखा था उनके department ने कुछ समय पहले discover किया है कि आत्मा ने वाकई में जो पहला शरीर धारण किया वह अमीबा था | उनके पास इस रिसर्च का documentary evidence है |

 

वे इस बात से आश्चर्यचकित थे कि मुझे इतने समय पहले से यह सब कैसे ज्ञात है | मिल गया evidence ! ईश्वर (ब्रह्म) हमसे उतना ही दूर हैं जितना धरती सूर्य से | लेकिन हम ईश्वर को फिर भी महसूस कर सकते हैं अपने धड़कते हृदय में | इतना ही नहीं, फूल की खुशबू में, बोए हुए बीज में से निकलते वृक्ष में हम ब्रह्म की मौजूदगी हमेशा महसूस कर सकते हैं |

 

Where does Soul live in Human Body? शरीर में आत्मा कहाँ निवास करती है? Vijay Kumar Atma Jnani

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