स्वयं को पाने के लिए खुद ब्रह्म ने 84 लाख योनियों का सफर निश्चित किया है तो परमात्मा जल्दी कैसे मिलेंगे ? ब्रह्म द्वारा सुनियोजित क्रम के अनुसार हर 100 ~ 150 वर्षों में 800 करोड़ लोगों में एक या 2 इंसानों को ब्रह्म साक्षात्कार का मौका मिलता है | पिछले 150 वर्षों में पहले रामकृष्ण परमहंस (1886) और फिर महर्षि रमण (1950) को ब्रह्म तक पहुंचने का सौभाग्य प्राप्त हुआ |
अगर ब्रह्म को पाना आसान होता तो ब्रह्म को ब्रह्माण्ड रचने की आवश्यकता ही क्यों थी ? हर आत्मा शनै शनै 84 लाख योनियों के भ्रमण के बाद उन तक पहुंचे – ऐसा ही संसार रचाया प्रभु ने | संसार रूपी मायानगरी में मनुष्य रूप 73 लाख योनियां पार करने पर मिलता है | बची 11 लाख योनियों में मनुष्य किसी भी योनि में ब्रह्मज्ञानी, तत्वज्ञानी हो सकता है |
लेकिन मनुष्य धरती रूपी मायानगरी में भ्रमित हुआ घूमता रहता है | अगर सही कहें – पूरी धरती पर 800 करोड़ लोगों में किसी को भी सही ध्यान करना नहीं आता | किसी भी साधक को अगर सही ध्यान लगाना आ जाए तो स्वामी विवेकानंद और फिर रामकृष्ण परमहंस की स्थिति तक पहुंचने में क्रमशः 12 या 14 वर्ष ही लगते हैं |
रामकृष्ण परमहंस 1886 में चले गए, दूसरा फिर तीसरा रामकृष्ण परमहंस कहां हैं ? रामकृष्ण परमहंस के बाद सिर्फ महर्षि रमण को परमात्मा तक पहुंचने का मौका मिला | उसके बाद 75 वर्ष बीत गए और अब लोगों को निष्कलंक 64 कलाओं से युक्त कल्कि अवतार के आने का इंतजार है |
Internet पर ध्यान करने की ढेरों विधियां उपलब्ध हैं | जिन्हें खुद कैवल्य ज्ञान प्राप्त नहीं, वे आधा अधूरा ज्ञान बांटते रहते हैं | जैन धर्म के 24 वे तीर्थंकर महावीर सही कहते थे – पहले कैवल्यज्ञानी बनों, फिर ज्ञान बांचना | हमें ऐसे आधे अधूरे ज्ञान से दूर रहना चाहिए | सही ध्यान के लिए गुरु की भी आवश्यकता नहीं होती | अध्यात्म एक अंदरूनी सफर है जो खुद अकेले ही करना है |
परमात्मा को पाना है तो 12 वर्ष की अखंड ब्रह्मचर्य और ध्यान की तपस्या में उतरना होगा | नीचे दिए video में ध्यान कैसे करते हैं – समझ आएगा |
Dhyan kaise karein | ध्यान करने की सही विधि | Vijay Kumar Atma Jnani