तत्वज्ञानी उसे कहते हैं जो आध्यात्मिक सफर के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है जैसे महर्षि रमण, रामकृष्ण परमहंस व आदि शंकराचार्य इत्यादि | जिसने तत्व को जान लिया, जिसने जीवन के सत्य को पहचान लिया कि वह एक शरीर नहीं बल्कि एक अविनाशी आत्मा है – वह तत्वज्ञानी आखिरकार उस परम तत्व को जान भी लेता है और उसका साक्षात्कार भी कर लेता है |
और वह परम तत्व है ब्रह्म, जिसने पूरा ब्रह्माण्ड बनाया – जिसे हम परमपिता परमेश्वर, परमात्मा, सनातन पुरुष, भगवान, प्रभु आदि नामों से भी पुकारते हैं |
परमात्मा यानि परम आत्मा – आत्मा तो हम खुद हैं जिसने धरती पर मनुष्य शरीर धारण किया हुआ है | और वह परम आत्मा यानि परमात्मा जो सब आत्माओं का कारण है | परमात्मा है तो आत्माएं हैं अन्यथा कुछ भी नहीं | आदि शंकराचार्य का अद्वैत वेदांत कहता है परम आत्मा की सत्ता के अलावा पूरे ब्रह्माण्ड में और कोई सत्ता exist ही नहीं करती |
वह तत्व जिसे हम आत्मा कहते हैं को जानना ही अध्यात्म का सार है | हर आत्मा धरती मां पर तब तक जन्म लेती रहेगी (यानि शरीर धारण करती रहेगी) जब तक वह 84 लाखवी योनि पर नहीं पहुंच जाती | धरती पर जैसे ही कोई साधक तत्वज्ञानी हो जाता है तो वह आत्मा जन्म मृत्यु के चक्र से free होकर परमात्मा से मिल जाती है यानी उसमे लीन हो जाती है | तत्वज्ञानी यानि आत्मा अपने पूर्ण शुद्ध रूप में वापस आ गई |
Is God formless in Hinduism? भगवान साकार है या निराकार | Vijay Kumar Atma Jnani