पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते |
उपरोक्त श्लोक के अनुसार अगर पूर्ण में से पूर्ण निकाल दें तो भी पूर्ण ही शेष रहता है | यह यथार्थ सिर्फ ब्रह्म पर applicable है अन्य कहीं नहीं | अध्यात्म में सिर्फ और सिर्फ ब्रह्म को पूर्णता की दृष्टि से देखा जाता है | मानव जीवन तो कर्मों से बंधा है – आत्मा की दृष्टि से मात्र एक कपड़ा | योनि दर योनि रूप बदलता रहता है | और अंत में मानव शरीर पूर्णतया विलीन हो जाता है – खाक हो जाता है | रह जाती है तो एक शुद्ध हुई आत्मा जो अंततः पूर्ण ब्रह्म में सम्मिलित हो जाती है |
भौतिक दृष्टि से देखा जाए तो मनुष्य तो नहीं लेकिन हां उसके अंदर निहित आत्मा, जो कि ब्रह्म का ही एक सूक्ष्म अंश है अंततः पूर्ण ब्रह्म में ही विलीन हो जाती है – तब जब इंसान आध्यात्मिक सफर में तत्वज्ञानी बन जाता है | मनुष्य के आध्यात्मिक सफर की कहानी को नीचे दिए video में देखें –
What was the role of Arjuna in Mahabharata? आज का अर्जुन कौन आध्यात्मिक परिवेश में | Vijay Kumar