भगवान कृष्ण तो महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाकाव्य महाभारत के एक पात्र हैं | और सही मायने में हमारे हृदयस्थल में स्थित आत्मा हैं | गीताप्रेस की कुछ टीकाओं में चित्र मिलते हैं जहां हर जीव चाहे वह मनुष्य हो या पशु पक्षी, सभी के हृदयस्थल पर भगवान कृष्ण को चिन्हित किया गया है | यह क्या दर्शाता है कि भगवान कृष्ण ही सब में स्थित आत्मा हैं |
जब महर्षि वेदव्यास ने देखा आम मानस और पढ़े लिखे scholars भी वेदों और उपनिषदों में निहित ज्ञान को समझने में असमर्थ हैं तो उन्होंने काव्य के रूप में महाभारत ग्रंथ की रचना की और उसमे भगवद गीता का संवाद डाला | और उनकी यह आध्यात्मिक शिक्षा ज्ञान प्रणाली रंग लाई और भगवद गीता, भगवान कृष्ण के मुख से निकली वाणी के बतौर प्रसिद्ध हो गई |
मकसद था भगवद गीता में छिपे ज्ञान को घर घर तक पहुंचाना और महर्षि वेदव्यास इसमें पूर्णतया सफल हुए | जिस दिन कोई भी साधक आध्यात्मिक सफर में इस तथ्य को पहचान लेता है कि हृदय से आती आवाज़ और किसी की नहीं बल्कि अपनी आत्मा की है, तो भगवद गीता में निहित ज्ञान समझ आने लगता है |
भगवान तो ब्रह्माण्ड में सिर्फ एक ही हैं, ब्रह्म | उन्हें चाहे किसी भी नाम से पुकार लो – पुरुषोत्तम, परमेश्वर, हरि, भगवान, प्रभु, सनातन पुरुष इत्यादि |
महर्षि वेदव्यास और महाभारत महाकाव्य का आध्यात्मिक सच | Vijay Kumar Atma Jnani