भगवान श्रीकृष्ण में खोया नहीं जाता, उन्हें प्राप्त किया जाता है | अध्यात्म में जब हम ध्यान/ चिंतन में उतरते हैं तो हमें पहली बार अहसास होता है अर्जुन और कोई नहीं हम खुद हैं | सत्य के मार्ग पर चलकर अगर हम ध्यान से सुने तो हमे हृदय से आती कृष्ण (सारथी) की आवाज़ साफ सुनाई पड़ेगी |
इसी कृष्ण (हृदय से आती अपनी आत्मा) की आवाज़ को मैं 5 वर्ष की आयु से साफ सुन सकता था और जीवन में कभी भगवद गीता के 700 श्लोक पढ़ने की जरूरत ही नहीं पड़ी | सब का सार स्वतः ही समझ आ गया | मुझे बस एक काम करना पड़ा – 5 वर्ष की आयु से मुंह से एक भी झूठ नहीं निकला – सत्य का दामन 5 वर्ष की आयु में जो पकड़ा, कभी नहीं छूटा |
What was the role of Arjuna in Mahabharata? आज का अर्जुन कौन आध्यात्मिक परिवेश में | Vijay Kumar