रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु का कारण था अपने कंठ में रोके हुए विष को गले में खुला छोड़ देना, नतीजा – विष के शरीर में फैल जाने के कारण अकाल मृत्यु | रामकृष्ण परमहंस चाहते तो और समय के लिए नीलकंठी बने रह सकते थे लेकिन कोई भी तत्वज्ञानी ऐसा क्यों करेगा, वह तो जल्द से जल्द ब्रह्म से मिलना चाहेगा और इसी कारण शरीर जल्दी त्याग देगा |
क्या रामकृष्ण परमहंस नीलकंठी की श्रेणी में आते हैं ? हर साधक जो अध्यात्म की राह पकड़ अंततः तत्वज्ञानी हो जाता है उसे शिव कहते हैं | महावीर, बुद्ध, आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस व महर्षि रमण सभी इस category में आते हैं | अगर आप समुद्र मंथन की गाथा का सार देखेंगे तो सब समझ आयेगा |
यही तत्वज्ञानी शिव जब अपना शरीर त्याग देते हैं और हमेशा के लिए जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं तो विष्णु के आसन पर आरूढ़ हो जाते है या सरल शब्दों में कहें तो विष्णु बन जाते हैं | अध्यात्म में हमें हमेशा शास्त्रों में निहित मर्म तक पहुंचना होता है, इसी कारण किताबी ज्ञान की तरह शास्त्रों में वर्णित ज्ञान समझ नहीं आता |
Samudra Manthan ki gatha | समुद्र मंथन की गाथा | Vijay Kumar Atma Jnani