बिना मौन धारण किए अध्यात्म में प्रगति संभव नहीं | इतना ही नहीं हर मौनी, आध्यात्मिक साधक अंतर्मुखी भी होगा – तभी वह अंदर की हृदय की ओर यात्रा सुगमतापूर्वक कर सकेगा | महर्षि रमण मौन साधना के सबसे बड़े संस्थापक थे | आप खुद सोचिए – बिना मौन धारण किए चिंतन में उतरा ही नहीं जा सकता |
ऊपरी तौर पर नजर आएगा कि एक मौनी व्यक्ति नक्कारा है, कामचोर है लेकिन उसके अंदर क्या चल रहा है किसी को नहीं मालूम ! सच्चा साधक हमेशा मौन धारण कर चिंतन में व्यस्त रहता है | ऊपरी दुनिया के काम भी करता रहता है और साथ साथ अंदरूनी चिंतन भी चलता रहता है |
हम जिसे उपरी मौन समझ रहे हैं वह अंदरूनी ब्रह्म से वार्तालाप भी हो सकता है | ब्रह्म से वार्तालाप सिर्फ और सिर्फ मौन की अवस्था में संभव है | गहन जंगलों में मौन में उतरने से पहले ऋषिगण इस बात की जांच कर लिया करते थे कि कोई हिंसात्मक पशु आस पास तो नहीं | मौन में स्थित साधक को बाहरी दुनिया का भान नहीं रहता |
बचपन में मैं जब भी मौन साधना में उतरता था तो मां से इजाजत लेकर अन्यथा बीच में कोई ना कोई घर का सदस्य disturb करने आ जाता | मां से कहता था घर का कोई भी काम हो पहले करा लो – बाद में disturb नहीं करना | मैं बचपन में घंटों मौन अवस्था में बैठा रहता था – ब्रह्म से खूब बातें होती थीं और अपने प्रश्नों के उत्तर भी ढूंढ़ लेता था |
मौन ध्यान में उतरने का साधन है और इसीलिए बहुत ज्यादा वाचाल व्यक्ति कभी सीरियस साधक नहीं बन सकता |
Dhyan kaise karein | ध्यान करने की सही विधि | Vijay Kumar Atma Jnani