ईश्वर की दृष्टि से यह संसार कैसा दिखलायी पड़ेगा ?


ब्रह्म की दृष्टि में संपूर्ण जगत सिर्फ उनके सपनों में exist करता है ? अगर हकीकत में exist करता तो ब्रह्माण्ड की boundary भी होती तो उसके पीछे क्या ? अगर हम गहन चिंतन में उतरें तो पाएंगे पूरा संसार मायावी है – इसलिए आदि शंकराचार्य ने doctrine of Maya प्रतिपादित की |

 

Doctrine of Maya अनुसार सम्पूर्ण जगत सिर्फ और सिर्फ ब्रह्म के खयालों में exist कर सकता है अन्यथा नहीं | एक मायने में यह सही भी है – कैसे ? Doctrine of Maya अनुसार दुनिया में हर वस्तु को अगर उसके वास्तविक मूल रूप में परिवर्तित किया जाए तो हर वस्तु सिर्फ गैस का बुलबुला है (cluster of atoms and molecules) !

 

हर मनुष्य भौतिक नज़रों से स्थूल नजर आता हैं लेकिन वास्तविकता में हर मानव है तो atoms और molecules का गुच्छा ही | भगवान की दृष्टि में पूरी दुनिया मात्र एक video game की तरह है | जब हम game खेलते हैं तो सभी पात्र जीवित से लगते हैं लेकिन game समाप्त होने पर सब गायब !

 

क्योंकि ब्रह्म खुद चेतन तत्व हैं और हम आत्माएं उनका एक अंश – तो ब्रह्म को दुनिया के दुख दर्द से सीधा वास्ता नहीं | हां – मनुष्य जब अध्यात्म में उलझ ब्रह्म की ओर बढ़ता है तो उसे अच्छा लगता है – बेहद अच्छा ! आध्यात्मिक सफर में मनुष्य का एक शुद्ध आत्मा बन जब ब्रह्म से विलय होता है तो वह दिन ब्रह्म के लिए बेहद खुशी का दिन होता है |

 

जब रामकृष्ण परमहंस 1886 में और महर्षि रमण 1950 में शुद्ध आत्मा बन तत्वज्ञानी हो गए तो वह क्षण ब्रह्म के लिए भी विलक्षण था क्योंकि धरती पर तत्वज्ञान 800 करोड़ लोगों में 100~150 वर्षों में एक या दो साधकों को ही नसीब होता है |

 

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