किसी भी तरह का जप करने से भगवान के नजदीक नहीं पहुंचा जा सकता | जप की अध्यात्म में कोई जगह नहीं | माला जपने से क्या भगवान मिलेंगे या कर्मों की निर्जरा होगी – बिल्कुल नहीं | अक्सर देखने में आता है जो लोग घंटों मंदिरों में माला इत्यादि जपने में व्यस्त रहते हैं उनका अहंकार चरम पर होता है | उन्हें इस बात का अंदरूनी घमंड होता है कि वे काफी समय भगवत सेवा में लगाते हैं |
अध्यात्म में सबसे मूल है अपने अहम को धीरे धीरे ध्वस्त करना और जप में लगे लोग कभी इस बात की चेष्टा नहीं करते कि अहंकार कम हो ? जप में लगे लोगों को इस बात का ज्ञान ही नहीं कि भगवान तो आत्मा स्वरूप हृदय में बैठे हैं तो मंदिर क्यों जा रहे हैं ? धार्मिक प्रपंचों से हमें निकलना ही होगा, कर्मकांडो की अध्यात्म में जरूरत नहीं |
अगर हम सच में भगवान के चरणों में समय व्यतीत करना चाहते हैं तो अध्यात्म में ध्यान में उतरना ही होगा | जन्म और मृत्यु के बंधन को काटने के लिए कर्मों कि पूर्ण निर्जरा जरूरी है और यह बिना ध्यान/ चिंतन में उतरे संभव नहीं | जप में लगे रहने से हम अपना ही कीमती वक़्त जाया कर रहे हैं और किसी का नहीं |
अगर हम चिंतन करेंगे तो पाएंगे हमारे पास सिर्फ एक जीवन है – जो कुछ करना है इसी जीवन में करना है | जब भी मैं मंदिरों में भीड़ देखता हूं तो विश्वास नहीं होता कि धरती पर सबसे उच्च योनि में स्थित मनुष्य इस तरह अपने अमूल्य समय को नष्ट कर सकता है ? अगर आप सच्चे साधक है तो धार्मिक रीति रिवाजों को त्याग ध्यान में उलझें | तभी सच्चा कल्याण संभव है |
Dhyan kaise karein | ध्यान करने की सही विधि | Vijay Kumar Atma Jnani