क्या मृत्यु के बाद भी कोई और जीवन होता है ?


अगर हम आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो ब्रह्म की दृष्टि में मृत्यु नाम की क्रिया ब्रह्माण्ड में नहीं होती | मृत्यु शरीर की होती है आत्मा की नहीं | पहली योनि में आने के बाद आत्मा शरीर नष्ट होने पर नया शरीर धारण करती है और यह क्रम निर्बाध रूप से चलता रहता है | जीवन दर जीवन आत्मा पहले शरीर के नष्ट होने पर नया शरीर धारण कर लेती है |

 

ब्रह्म की दृष्टि में पूर्ण जगत सिर्फ और सिर्फ गैस के बुलबुलों का मात्र एक गुच्छा है | गैस यानी atoms ओर molecules के पुंज | हर मनुष्य असल में atoms और molecules का एक cluster ही तो है – उससे ज्यादा कुछ भी नहीं | ब्रह्मांडीय दृष्टि में पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त सब कुछ एनर्जी ही तो है – सिर्फ और सिर्फ atoms और molecules के गुच्छे |

 

इन atoms और molecules के अतिरिक्त कुछ है तो वह है आत्माओं का झुंड जो पूरे जगत में व्याप्त हैं | आप जानते हैं आत्मा का साइज ? पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त आत्माएं जब अपने शुद्ध रूप में लौट आती हैं तो अस्थ अंगुष्ठ का आकार लेती हैं यानि आठे अंगूठे का size | इसी अस्थ अंगुष्ठ को हम ब्रह्म के नाम से पुकारते हैं – हमारे प्रिय भगवान !

 

अपने को शुद्धि की ओर ले जाने के लिए आत्माएं पुराने शरीर के ढल जाने (मृत्यु को प्राप्त होने) पर नया शरीर धारण कर लेती हैं और इस क्रिया को हम धरतीवासी पुनर्जन्म कहते हैं | हर शरीर के मृत होने पर (चाहे वह मनुष्य का हो या किसी निम्न योनि का) – आत्मा पुनः नया शरीर धारण करती है – जब तक आत्मा 84 लाखवी योनि में न पहुंच जाए |

 

इस जन्म मृत्यु के चक्र से छुट्टी (मुक्ति) तभी मिलती है जब मनुष्य तत्वज्ञानी हो जाए यानि कुण्डलिनी को पूरा जागृत कर सहस्त्रार (thousand petalled lotus) पूरी तरह से खोल ले (active करे) |

 

मनुष्य रूप में 11 लाख योनियां हैं – कभी हम मजदूर के घर तो कभी ब्राह्मण के यहां, कभी british गर्ल तो कभी australian boy बनकर पैदा होते रहेंगे | लंबा चक्र है और मनुष्य रूप में पूरे 1 करोड़ वर्ष की अवधि | अगर कोई भी मनुष्य इस जन्म मरण के चक्रव्यूह से आज़ाद होना चाहता है तो उसे अध्यात्म का रास्ता पकड़ ब्रह्मचर्य और ध्यान की 12 वर्ष की अखंड तपस्या में उतरना होगा |

 

1.1 million manifestations in Human form? मनुष्य रूप में ११ लाख योनियों का सफर | Vijay Kumar

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