एक आध्यात्मिक पुरुष और एक आम आदमी की मृत्यु में फर्क होता है | आम इंसान जो धार्मिक प्रपंचों में लीन रहकर जीवन में कुछ पुण्य तो कमाता नहीं, तो अगले जीवन में क्या लेकर जायेगा ? धार्मिक अनुष्ठानों में लगे रहने से पुण्य अर्जित नहीं होता ?
इसके विपरीत एक आध्यात्मिक साधक हर समय पुण्य कर्म में लग, कर्मों की निर्जरा के बारे में सोचता है | मृत्यु के समय जो भी पुण्य कर्मफल है वह उसकी आत्मा के साथ अगले जीवन में जाएगा | जीवन भर जो कमाया बेकार नहीं गया |
पाप और पुण्य में क्या अंतर होता है? पाप और पुण्य क्या है? Vijay Kumar Atma Jnani