महाकुंभ छोड़िए जनाब, किसी भी नदी, जल धारा या नहर में स्नान करने से मोक्ष प्राप्ति संभव होती तो लोग बार बार जाकर गंगाजी में डुबकी नहीं लगाते ? फिर महावीर और बुद्ध को 12 वर्ष की अखंड तपस्या में उतरने की जरूरत क्यों पड़ी ? फिर ब्रह्म ने मनुष्य रूप के लिए 11 लाख योनियों का प्रावधान क्यों किया ?
70~80 वर्ष के जीवन में बस महाकुंभ में जाकर एक डुबकी और काम खत्म ! बिना वजह ब्रह्म ने वेद, उपनिषद और भगवद गीता का ज्ञान दिया ? जब एक डुबकी में काम संभव है तो शास्त्र चाहिए ही क्यों ? ऊपर से मंदिर जाने की जरूरत क्यों – पहले महाकुंभ में डुबकी और जीवन सफल | रामकृष्ण परमहंस और महर्षि रमण बेवजह ज्ञानयोग में लगे रहे ?
महाकुंभ स्नान एक धार्मिक प्रक्रिया है जिसका अध्यात्म से दूर दूर तक कुछ लेना देना नहीं | जब तक हम धार्मिक कर्मकांडो में फंसे रहेंगे आध्यात्मिक प्रगति संभव ही नहीं | हमें अपनी सोच बदलनी होगी यानि एक बार चिंतन में उतर (सिर्फ एक बार) यह सोचना होगा – अगर महावीर और बुद्ध 12 वर्ष की ध्यान और ब्रह्मचर्य की अखंड तपस्या में उतरे तो कोई वजह तो होगी !
ज्यों ज्यों हम अध्यात्म में चिंतन करते बढ़ेंगे आगे का द्वार स्वतः खुलता जायेगा | ध्यान में चिंतन ही एकमात्र सहारा है आध्यात्मिक प्रगति का | चिंतन के द्वारा हमें एकमात्र सत्य तक पहुंचना होता है | किसी भी बात के पहलु हज़ार हो सकते हैं लेकिन सत्य (अंदर छिपा मर्म) एक | जैसे ही हम प्रश्न की जड़ में पहुंच जाते हैं प्रश्न जड़ से हमेशा के लिए खत्म हो जाता है |
Is it necessary to go to temple to Realize God | भगवान की प्राप्ति के लिए क्या मंदिर जाना आवश्यक है