भारतीय दर्शन शास्त्रों भगवद गीता और उपनिषदों में यह बात बड़े स्पष्ट ढंग से समझाई गई है कि आध्यात्मिक सफर ध्यान के द्वारा किया जाता है | ध्यान में उतरने का एक ही रास्ता है चिंतन के द्वारा | आध्यात्मिक सफर एक अंदरूनी सफर है | ध्यान में जब साधक चिंतन के मार्ग से उतरेगा, उसमे किसी ब्राह्म व्यक्तित्व का हस्तक्षेप कैसा ? हमारे अंदरूनी सफर में कोई गुरु कर भी क्या सकता है ?
आध्यात्मिक प्रगति के लिए न तो किसी गुरु की, किसी आश्रम की, न किसी retreat पर जाने की आवश्यकता पड़ती है |
रामकृष्ण परमहंस व महर्षि रमण ने जो कुछ किया खुद ही किया | जब कोई साधक किसी प्रश्न पर अटक जाता है तो ब्रह्म कोई न कोई रास्ता निकाल देते हैं | जब रामकृष्ण परमहंस को कुछ नहीं सूझ रहा था और वो काली मां में भक्ति मार्ग पर अटक गए थे तो तोतापुरी ने उन्हें उस असमंजस से निकाला | इसका मतलब यह नहीं कि रामकृष्ण परमहंस को तोतापुरी नहीं मिलते तो वो अटके रह जाते |
रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानंद के गुरु कतई नहीं थे | स्वामी विवेकानंद ने सम्पूर्ण आध्यात्मिक सफर खुद तय किया | जब स्वामीजी ब्रह्म से related एक प्रश्न पर अटक गए तो उसका समाधान रामकृष्ण परमहंस ने कर दिया |
मेरा यह मानना है कि जब साधक ब्रह्म की खोज में तन्मयता से निकल जाता है तो ब्रह्म खुद ध्यान रखते हैं कि साधक अगर किसी point पर अटक गया है तो उसका समाधान उसे दिलवाएं | मेरे सम्पूर्ण आध्यात्मिक सफर मुझे हमेशा ब्रह्म का साथ मिलता रहा | यह शाश्वत नियम है जब कोई अर्जुन बनना चाहता है तो कृष्ण मदद के लिए आ ही जाते हैं |
अर्जुन के रथ और सारथी कृष्ण का रहस्य | Vijay Kumar… the Man who Realized God in 1993 | Atma Jnani