आत्मा परमात्मा से मिलन, योग करना चाहती है और मनुष्य अध्यात्म के रास्ते पर चलकर ब्रह्म को पाना चाहता है, तो दोनो बातों में सामंजस्य कहां ? आत्मा परमात्मा का अभिन्न अंग है, एक गेहूं का दाना आत्मा और पूरी ढेरी परमात्मा | ब्रह्माण्ड में व्याप्त सभी आत्माएं प्रलय के समय जब अपने शुद्ध रूप में आ जाती हैं तो आत्माओं के उस झुंड को हम परमात्मा कहते हैं |
अध्यात्म में जब हम ब्रह्म की खोज में निकलते हैं तो असल में हम खुद को ही realize करते हैं, जानते हैं | इसीलिए इस क्रिया को self realization भी कहते हैं, self realization यानी आत्म तत्व की खोज | हम एक आत्मा हैं, इस बात का बोध हमें अध्यात्म के मार्ग से होता है जब हम ध्यान में चिंतन के द्वारा उतरते हैं | स्वयं को जानना कि हम एक आत्मा हैं और जल्दी से जल्दी अपनी original शुद्ध अवस्था प्राप्त करना चाहते हैं, ही आध्यात्मिक सफर की पहचान है |
आत्माएं स्वयं तो दृष्टा की भांति काम करती हैं और कर्म करने के लिए धारण करती हैं एक शरीर | इसलिए धरती पर हर मनुष्य का जीवन का आखिरी लक्ष्य तो ब्रह्म को प्राप्त करना, स्वयं के असली स्वरूप को जानना ही है | लेकिन स्वयं को जानने की प्रक्रिया के लिए भगवान ने 11 लाख मनुष्य योनियों का समय निमित्त किया है | जल्दी कुछ भी नहीं, हम इस जन्म में या किसी अगले जन्म में आध्यात्मिक सफर शुरू कर एक शुद्ध आत्मा बन सकते हैं |
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