विवेक करने की शक्ति – वह अनमोल शक्ति है जो हमें पशु बनने, मारने मारने से रोकती है |
जब मैंने आध्यात्मिक यात्रा शुरू की – 5 वर्ष की आयु में तो भारतीय सनातन शास्त्रों को देखकर ही मन घबराता था | दादाजी संन्यास ले चुके थे से और घर में ही सन्यासी की तरह रहते थे | उनका विशाल पुस्तकालय और उसमे गीताप्रेस की मोटी मोटी टीकाएं देखकर लगता था – कितना पढ़ना पड़ेगा | खैर अभी अ आ, A B C D सीखा नहीं था सो खास चिंता थी नहीं |
वक़्त गुजरता गया और मैं रोज दादी, बुआ आदि से धार्मिक कहानियां सुनने लगा | कहानियां सुनते सुनते मैंने एक बात notice की | कहानी सुनने के बाद हर कहानी का मर्म मुझे समझ आने लगा | जब मैं उस मर्म के बारे में दादी या बुआ से बात करता तो वो भौचक्का हो मुझे देखती (जैसे कह रही हो – इस छोटे से बालक को ये ज्ञान किसने दिया) |
समय के साथ मैंने observe किया कि मेरे अंदर जो विवेक की प्रतिभा मौजूद थी वो हंस की भांति काम कर रही थी | किसी भी आध्यात्मिक कहानी का मर्म मुझे तुरंत समझ आ जाता था | कारण मैंने बाद में जाना | 5 वर्ष की आयु से मैं एक भी झूठ नहीं बोल पाता था – पूर्णतया सत्य पर स्थापित था | इस कारण विवेक शक्ति पूरा साथ देती थी |
समय के साथ जब मैं गहन चिंतन में उतरा तो बड़ी से बड़ी पुस्तक / टीका मैं कुछ ही घंटों में खंगाल लेता था | जो काम का होता वह हंस की भांति ग्रहण कर लेता और बाकि से मुझे क्या काम ! इसी विवेक शक्ति के कारण मैंने अपने अंदर सारथी के रूप में हृदय में स्थित भगवान कृष्ण को पहचाना | फिर क्या था – भगवद गीतासार मुझे समझ आने लगा |
मैंने भगवद गीता खोलकर भी नहीं देखी लेकिन हृदय में बैठे कृष्ण सब बता देते | बिना पढ़े मुझे सम्पूर्ण गीतासार समझ आ गया और ब्रह्म कौन होते हैं – यह भी | अगर मनुष्यों में विवेक शक्ति नहीं होती तो मनुष्यों को अध्यात्म का मर्म कैसे समझ आता | चिंतन के लिए विवेक का होना अति आवश्यक है | यह विवेक ही है जो हमें हंस बनने की क्षमता प्रदान करता है |
यह विवेक ही है जिसके कारण 37 वर्ष की आयु में मैं ब्रह्म का साक्षात्कार कर पाया |
Listen to Inner Voice coming from within our Heart | हृदय से आती आवाज को सुनना सीखें | Vijay Kumar