धरती पर जब मानवता पनपी तो पहले ऋषियों ने वेदों का ज्ञान सीधे ब्रह्म से ग्रहण किया | वेदों में निहित ज्ञान इतना विस्तृत था कि साधक तो दूर, बड़े बड़े scholars भी उसे समझने में असमर्थता दिखा रहे थे | तब कुछ तो करना ही था |
महर्षि वेदव्यास ने महाभारत महाकाव्य की रचना की और जो वेदों में निहित जानने योग्य गूढ़ ज्ञान था (जिसे पाकर साधक मोक्ष प्राप्त कर सके) उसे भगवद गीता उवाच के नाम से कृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद के रूप में प्रतिपादित कर दिया |
बस फिर क्या था | आध्यात्मिक जगत तो जैसे पागल हो गया | उन्हें भगवद गीता के रूप में वह सब मिल गया जिसे समझकर कोई भी इंसान धरती पर मोक्षगामी हो सकता है |
अपने ब्रह्म के साथ हुए साक्षात्कार के बाद, मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि साधक अगर उपनिषदों में न भी उलझे तो भी उसे सिर्फ भगवद गीता में निहित ज्ञान के द्वारा तत्त्वज्ञान प्राप्त हो सकता है | तो मानवता को और क्या चाहिए ? इस संसार में हम अगर किसी ऋषि के ॠणी हैं और हमेशा रहेंगे तो वे हैं महर्षि वेदव्यास – धरती पर निहित सारे ज्ञान के रचयिता |
महर्षि वेदव्यास और महाभारत महाकाव्य का आध्यात्मिक सच | Vijay Kumar Atma Jnani