एक आध्यात्मिक साधक जब निष्काम कर्मयोग की भावना से जग में कार्य करता है तो कर्म उसे बांधने की कोशिश करते हैं | भला फल की चिंता क्यों न हो या फल से चिंतामुक्त एकदम कैसे हों ? तो साधक वैरागी होने की कोशिश करता है |
वैराग्य यानि सांसारिक बंधनों से विरक्त होने की चेष्टा | मुश्किल तो है, धीरे धीरे होगा, लेकिन हो जाएगा | इन्द्रियों पर कंट्रोल स्थापित करना है तो वैरागी बनना ही होगा | वैरागी मूलतः अंतर्मुखी होगा, हर समय चिंतन में डूबा रहेगा |
अनासक्ति पैदा करना आसान नहीं | मन में हजारों तरह के विचार आएंगे, उन पर धीरे धीरे अंकुश लगाना और सत्य की तह/ जड़ तक पहुंचना | एक सच्चा वैरागी हमेशा दुनिया के भले की सोचता है | तभी वह कर्मफल भगवान को अर्पण कर सकता है |
एक गृहस्थ भी वैरागी हो सकता है | लेकिन ऐसा करने से परिवार की समस्याएं बढ़ती हैं घटती नहीं | एक आध्यात्मिक साधक कभी परिवार का भला कर ही नहीं सकता | क्यों ? क्योंकि सच्चे साधक के लिए पूरा संसार ही घर हो जाता है – सभी अपने हैं |
वैराग्य अपने आप में बुरा नहीं लेकिन वैरागी से जुड़े लोगों के लिए अभिशाप की तरह काम करता है | रामकृष्ण परमहंस घर में वैरागी का जीवन जीते थे – उनकी पत्नी पर क्या गुजरती होगी ? बेचारी शारदा मां मर मरकर जीती थीं |
Nishkama Karma Yoga | निष्काम कर्म योग का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani