बिना पूर्ण समर्पण भाव के भगवान में आस्था पूर्ण नहीं होगी | अध्यात्म में अगर समर्पण पूर्ण नहीं है तो आप अध्यात्म में फेल हैं | कर्मों में निष्काम भाव से उतरने के लिए पूर्ण समर्पण चाहिए | जो लोग भक्तियोग में विश्वास रखते हैं, अगर उनमें पूर्ण समर्पण भाव नहीं होगा तो वांछित फल कैसे मिलेगा ?
समर्पण अध्यात्म का मूल है | बिना समर्पण भाव के अध्यात्म में एक कदम भी नहीं चल सकते |
विश्वास का क्या है – कल था आज नहीं है | घटता बढ़ता रहता है | पूर्ण विश्वास नामक चीज नहीं होती | विश्वास को डगमगाते देर नहीं लगती | इसके विपरीत समर्पण का भाव कभी डगमगाता नहीं | वह हमेशा स्थिर रहता है | समर्पण का भाव हम किसके प्रति रखते हैं – सिर्फ भगवान के | समर्पण भाव के पीछे होती है हमारी प्रगाढ़ आस्था |
आपने भगवान से कुछ मन्नत मांगी, पूरी नहीं हुई – आपका भगवान पर विश्वास पूरा हिल गया | दोबारा लौट भी आयेगा लेकिन विश्वास कभी एकसा नहीं रहता – घटता बढ़ता रहता है | बहुत बातों पर कभी विश्वास जम जाता है और कभी गायब भी हो जाता है |
What is Bhakti | भक्ति क्या है | Vijay Kumar Atma Jnani