रावण एक विद्वान ब्राह्मण था | उसकी सबसे बड़ी व्यथा थी उसका घमंड | वह अपने को राम से भी ज्यादा बड़ा योद्धा समझता था लेकिन दुनिया को साबित कैसे करे ? इसी कारण उसने सीता का हरण किया कि छुड़ाने राम आयेगा तो द्वंद युद्ध होगा और मैं अपनी राम के ऊपर जीत दुनिया की नज़रों में साबित कर सकूंगा |
रावण की निकृष्ट सोच ने ही उसे गलत काम करने पर मजबूर किया था | लेकिन ब्राह्मण होते हुए उसने सीता को छुआ तक नहीं | यह बात क्या दर्शाती है कि सिर्फ अहंकार ने उसे जकड़ रक्खा था जिससे वह निकल नहीं पाया तो सीता का हरण करने का पाप सिर पर लिया | अन्यथा रावण एक प्रकांड पंडित था |
आध्यात्मिक दृष्टि से यह प्रसंग क्या दर्शाता है कि जो साधक अपने अहंकार पर अंकुश लगाने में असमर्थ है उसकी स्थिति रावण जैसी होती है | न तो आध्यात्मिक उन्नति होती है और ऊपर से समाज का तिरस्कार |
सही आध्यात्मिक प्रगति के लिए सच्चे साधक को समुद्र मंथन की गाथा को भलीभांति समझना चाहिए और negative विचारों की निर्जरा करते हुए जीवन में आगे बढ़ना चाहिए | अन्यथा अहंकार हमारी सारी आध्यात्मिक प्रगति को शून्य कर देगा जैसा रावण के साथ हुआ | हर साल जलाया जाता है |
Samudra Manthan ki gatha | समुद्र मंथन की गाथा | Vijay Kumar Atma Jnani