विष्णु ब्रह्म की विभूतियों में से एक हैं | उन्हें शेषनाग की शैया पर लेटे इसलिए दिखाया जाता है क्योंकि करने को अब कुछ बाकी नहीं | अध्यात्म में जब साधक 12 वर्ष की ध्यान कि अखंड तपस्या पूरी कर लेता है तो वह तत्वज्ञानी यानि शिव हो जाता है | समुद्र मंथन की गाथा के मर्म को समझेंगे तो सब समझ आयेगा |
महर्षि रमण ने जैसे ही तत्वज्ञान प्राप्त किया वो शिव हो गए और जैसे ही शरीर छोड़ा तो विष्णु हो गए – विष्णु यानि एक शुद्ध आत्मा | विष्णु का शेषनाग की शैय्या पर लेटे रहने का मतलब है कि विष्णु वह जिसकी कुण्डलिनी पूरी जागृत हो चुकी है | शिव के गले में पड़े सर्प भी यही दर्शाते हैं कि कुण्डलिनी पूर्ण जागृत है |
उपरोक्त बातें क्या दर्शाती हैं – कि कुण्डलिनी जागृत किए बिना तत्वज्ञानी बन ही नहीं सकते |
ध्यान करने वाली बात है विष्णु के चरणों में बैठी लक्ष्मी क्या दर्शाती है कि धरती से – मोह माया की नगरी से हमेशा के लिए छुटकारा | जब एक आत्मा शुद्ध होकर विष्णु हो गई तो उसका धरती पर एक और शरीर धारण करने में कोई प्रयोजन नहीं रहता |
Samudra Manthan ki gatha | समुद्र मंथन की गाथा | Vijay Kumar Atma Jnani