पहले समय में यही प्रथा ज्यादा प्रचलित थी कि तत्वज्ञान पाने के लिए सांसारिक बंधन हमेशा के लिए काट दिए जाएं | आज यह सब जरूरी नहीं | घर में/ गृहस्थ आश्रम में ब्रह्मचर्य का सकुशल पालन किया जा सकता है | दिक्कतें तो आएंगी लेकिन आध्यात्मिक होकर हिम्मत कैसे हार सकते हैं ?
अध्यात्म में कूदने से पहले हमें अपना लक्ष्य तय करना होगा | फिर तय करना होगा ब्रह्मचारी रहकर अध्यात्म में उतरेंगे या गृहस्थ आश्रम बसाएंगे और फिर भी अध्यात्म का सफर चालू रखेंगे | दोनों ही अवस्थाओं में अध्यात्म में उतरा जा सकता है | अगर इसी जन्म में आखिरी छोर – तत्वज्ञान की स्थिति तक पहुंचना चाहते हैं तो संन्यास धारण करना अच्छा रहेगा |
लगभग 97% बंद पड़े मस्तिष्क को खोलने के लिए ब्रह्म ने मनुष्यों को 11 लाख योनियों का चक्र दिया है (लगभग 1 करोड़ वर्ष की अवधि) | अगर सब कुछ एक ही जन्म में पाना चाहते हैं तो मेहनत करनी होगी | तभी हम 84 लाखवी योनि में स्थापित हो पाएंगे |
संन्यास में ब्राह्म दखल न्यूनतम (minimal) हो जाता है | अंतर्मुखी हो हमारी तपस्या तेज हो जाती है | Family life/ या गृहस्थ आश्रम में बस समय ज्यादा लगेगा | रामकृष्ण परमहंस ने जीवन में बड़े दुख झेले | ऊपर से शारदा मां (पत्नी) की जिम्मेदारी ! Bachelor होते हुए स्वामी विवेकानंद सिर्फ 39 वर्ष की आयु में शरीर त्याग गए |
जिस परिस्थिति में हों, आध्यात्मिक जीवन हमेशा खुल कर जीना चाहिए |
How to indulge in Spirituality when married | गृहस्थ जीवन में अध्यात्म का रास्ता कैसे पकड़ें