सनातन शास्त्रानुसार कहा जाता है – जैसा मन वैसा फल | कहने का तात्पर्य है – जैसे हम विचारते है वैसी ही गति हमें प्राप्त होती है | अगर हम सुविचारेंगे तो पुण्य कार्य में लिप्त होंगे और फल भी मीठा ही होगा | कुविचार हमें पाप कर्म की ओर ढकेलते हैं और फल भी negative होगा |
जीवन भर हमने जिन विचारों को ढोया, अधिग्रहण किया – मरते समय वही विचार हमें आनंदित या तंग करते हैं | कोई जीवन भर पाप कर्मों में संलग्न रहा और चाहे अंत समय सुविचार मन में लावे – ऐसा कभी नहीं होगा | जीवन भर जैसी हमारी परिणति रही – मरते समय उसी तरह के विचारों का हम अधिग्रहण करेंगे – जो यह कहते है मरते वक़्त सुविचारों – यह संभव ही नहीं |
कहने का तात्पर्य है – अगर हम आनंदपूर्वक मृत्यु को प्राप्त होना चाहते हैं तो जीवन भर पुण्य कर्मों में लिप्त होना होगा | अचानक कुछ नहीं होगा कि जीवन भर पाप कर्मों में संलग्न रहने वाला इंसान अचानक मृत्यु के समय राम राम कहने लगे | चाहकर भी कोई ऐसा कर नहीं सकता | पापी व्यक्ति अंत समय में अचानक साधु नहीं हो सकता |
जो लोग सोचते हैं अंत समय में हरिद्वार जाकर गंगाजी में डुबकी लगाने से उद्धार होगा, बिल्कुल ग़लत | अगर प्रयागराज जाकर अस्थि विसर्जन करवाएंगे (प्राण तजेंगे) तो पुण्य कमाएंगे या और किसी धार्मिक कर्मकांड में संलिप्त होंगे तो शायद मोक्ष मिल जाए – ऐसा कुछ भी नहीं होगा | मिलेगा वहीं – जो हमने जीवन भर किया या कहें कमाया – पुण्य या पाप ! इसलिए कहा जाता है – हमेशा सुविचारों में मशगूल रहो – सब भला ही होगा |
किसी ने सही कहा है – as you sow, so shall you be | हमारे विचार ही हमें बनाते हैं | जैसा हम विचारेंगे – हम वैसे ही हो जाएंगे |
पाप और पुण्य में क्या अंतर होता है? पाप और पुण्य क्या है? Vijay Kumar Atma Jnani