सत्संग सत्य के नजदीक आने का जरिया है जबकि मन इन्द्रियों पर आश्रित भोग विलास की ओर ले जाता है | सच्चा सत्संग वह होता है जहां एक जैसी आध्यात्मिक प्रवत्ति के 2 से ज्यादा लोग आपस में विचार विमर्श करते हैं और सही छिपे तत्व तक पहुंचने की कोशिश करते हैं | सत्संग कभी भी एक तरफा प्रवचन का माध्यम नहीं होता | हमारे अंदर के प्रश्न तभी घुलेंगे जब हम एक दूसरे के साथ आमने सामने रूबरू होंगे और प्रश्नों के उत्तर ढूंढने की कोशिश करेंगे |
सत्संग हमेशा उन्हीं साधकों को करना चाहिए जिन्हें अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को ढूंढने में बेहद रुचि हो | सत्संग करने की और कोई वजह नहीं होती | जो लोग सत्संग में मन की शांति ढूंढने की कोशिश करते हैं वे सिर्फ अज्ञानी ही नहीं हैं – वे सत्संग में उलझ अपना अमूल्य समय गवां रहे हैं | ऐसे लोगों को सत्संग में कुछ भी पल्ले नहीं पड़ेगा | सत्संग बेहद गंभीर क्रिया है – यह आम इंसान के लिए है भी नहीं | यही कारण है मन सत्संग से दूर भागता है|
सत्संग में रुचि प्रायः उसी साधक की होगी जो सत्यमार्ग पर चलता है | सत्य की अध्यात्म में बहुत गहरी पैठ है – देखा जाए तो अध्यात्म में सत्य के बिना कुछ भी संभव नहीं | अध्यात्म में उतरने से पहले साधक को तीन बातें करनी होंगी – 1. ब्रह्म की सत्ता में पूर्ण विश्वास 2. ब्रह्म में पूर्ण आस्था और 3. सत्य की राह पर चलने की क्षमता | अगर इन तीनों में से एक भी missing है तो साधक आध्यात्मिक सफर सही ढंग से चल नहीं पाएगा और फेल हो जाएगा |
अगर पात्र ही शुद्ध नहीं तो ज्ञानी पुरुष से वह ग्रहण क्या करेगा ? अगर हमारे अंदर ही कमी हो तो गुरु कितना भी ज्ञानी हो, हमारे किसी काम का नहीं | सत्संग में सभी पात्रों का सही शिष्य होना बेहद आवश्यक है अन्यथा हम कुछ भी ज्ञान ग्रहण नहीं कर पाएंगे | अगर साधक के अंदर विचार विमर्श करने की क्षमता नहीं तो चर्चा, वार्तालाप कैसे होगा ? सत्संग के सफल होने के लिए हर साधक के अंदर शास्त्रार्थ करने की क्षमता होनी चाहिए |
फिर डर काहे का, सभी साधक एक ही श्रेणी के हैं | एक दूसरे का वक्तव्य सुन जब समाधान निकालेंगे तो प्रगति तो होगी ही | बस चर्चा करते करते हमें छिपे तत्व तक पहुंचना है | ध्यान रहे – हर प्रश्न का final उत्तर सिर्फ और सिर्फ एक ही होगा |
Power of Absolute Truth | अध्यात्म में सत्य का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani