अगर साधक एकांत में बैठकर चिंतन मनन करे तो कुछ गलत नहीं – लेकिन क्या एकांत में चिंतन मनन करना इतना आसान है ? इतिहास में महावीर 12 साल के चिंतन मनन में उतरे एक टीले पर खड़े होकर और यही काम सिद्धार्थ गौतम ने बोधि वृक्ष के नीचे बैठकर किया | जब एक आम इंसान पहली बार चिंतन में उतरता है तो समझ नहीं आता कहां से शुरू करें |
बस यहां पर सत्संग काम आता है | एक ही तरह की आध्यात्मिक रुचि रखने वाले जब 2 से अधिक व्यक्ति बैठकर चर्चा करते हैं तो आध्यात्मिक उन्नति बेहतर होती है | अगर 2 से ज्यादा मिल जाएं तो और भी अच्छा | आपस में विषय के हर पहलू का अवलोकन होगा और निष्कर्ष पर पहुंचेंगे | जिसका उत्तर तथ्य/ सत्य के नजदीक होगा वह सभी को मान्य होगा |
सत्संग के द्वारा किसी भी प्रश्न की जड़ में पहुंचने में समय कम लगता है | अगर अकेले ध्यान करेंगे तो वक़्त लगेगा ही लेकिन सत्संग में संभव है उत्तर जल्दी प्रकाशित हो जाए | मैंने अपने आध्यात्मिक जीवन में जितना संभव हो सका रुचि के लोगों को ढूंढकर सत्संग किया | कई बार समाधान जल्दी भी मिला | सत्संग करना उसी के साथ चाहिए जिसको विषय में बेहद रुचि हो |
सत्संग वो नहीं जो आजकल देखने को मिलता है – भीड़ इकट्ठा की और एकतरफा प्रवचन शुरू | आपके प्रश्न तो आपके अंदर ही रह गए | सफल सत्संग हमेशा 2 से 6 लोगों के बीच अपेक्षित है | विचारों के मंथन के लिए भीड़ नहीं चाहिए – तत्व चाहिए | सत्संग में अगर एक भी साधक चतुर, होशियार और ज्ञानी है तो वांछित फल मिलेगा ही |
बस सफल सत्संग के लिए सत्य का पालन बेहद जरूरी है |
Power of Absolute Truth | अध्यात्म में सत्य का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani