सत्संग में नींद आने का मूलभूत कारण एकतरफा प्रवचन है | जो बातें अधिवक्ता/ ज्ञानी पुरुष बोल रहा है उसमे कुछ पल्ले पड़ रही हैं, ज्यादातर नहीं | ऐसे में सोएंगे नहीं तो और क्या करेंगे ? एकतरफा सत्संग के कोई मायने नहीं | सत्संग में 2 से 6 व्यक्ति seriously आपस में विचार विमर्श करते हैं और सत्य पर पहुंचने की कोशिश करते हैं |
अगर हम 4 से 5 लोगों के सत्संग में एक participant हैं तो नींद कैसी ? सत्संग मतलब सभी को बोलने, अपने विचार रखने की पूर्ण आज़ादी | लेकिन आजकल लोग ऐसे सतसंगों का हिस्सा बन जाते हैं जो एकतरफा प्रवचन होते हैं | अगर हमारे अंदर उमड़ते प्रश्नों को समाधान मिला ही नहीं तो सत्संग कैसा ? सत्य एक होता है – सत्संग के द्वारा उस सत्य/ अंदर छिपे तत्व तक पहुंचना होता है |
पुराने समय में सत्संग गुरुकुल का एक खास हिस्सा हुआ करते थे | इससे प्रतिभाशाली शिष्यों को अपने ज्ञान को शीर्ष तक पहुंचाने का मौका मिलता था – जिसका उत्तर सत्य के नजदीक वह स्वीकार्य अन्य खारिज | सत्संग में हर हिस्सेदार बराबर का महत्व रखता है| एक शिष्य दूसरे को सिर्फ और सिर्फ ज्ञान और तर्क से पछाड़ सकता है |
गुरुकुल के समय में हार जीत नामक कोई चीज नहीं होती थी | अगर शिष्य ढीला है तो 4 की जगह 5 या 6 वर्ष में पार लग जाएगा | पास तो सभी होकर निकलेंगे | शिष्य चाहे कितना भी कमजोर हो आचार्य उस पर खास ध्यान देते | सतसंगों में ऐसे शिष्यों को विशेष प्रोत्साहन दिया जाता – तब तक जब तक वह बात के मर्म तक न पहुंच जाए |
सत्य पर आधारित होकर आध्यात्मिक क्षेत्र में कितनी भी प्रगति की जा सकती है | फिर सच्चे साधक के लिए नींद का प्रश्न कहां ? एकतरफा प्रवचनों में जाकर सच्चा साधक समय नष्ट नहीं करता | आखिर ध्यान भी अकेले में ही हो सकता है | ध्यान क्योंकि अंदरूनी सफर है तो अकेले में ही होगा और सत्संग 2 से 6 लोगों के बीच |
Power of Absolute Truth | अध्यात्म में सत्य का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani