सत्संग में सत् का अर्थ क्या होता है – सत्संग हेतु साधु या संत होना आवश्यक है क्या ?


सत्संग यानि सत का संग यानि मनुष्य जब बैठकर आपस में सत्य की विवेचना करे – सत्य पर पहुंचने की कोशिश करे | सत्संग यानि 2 से 6 लोग आपस में चिंतन/ मनन द्वारा सत्य के मार्ग पर चलते हुए तत्व या कहें छिपे हुए मर्म तक पहुंचने की कोशिश करें | कोई भी इंसान जिसकी अध्यात्म में रुचि है सत्संग कर सकता है | अगर आज अध्यात्म का पहला दिन है तो भी |

 

चिंतन/ मनन की आज़ादी तो सभी को है | हम किताबी ज्ञान में चाहे जीरो हों लेकिन अध्यात्म में एक पहुंचे हुए साधक हो ही सकते हैं | यह संभव है अगर हम विवेक और will power का बखूबी इस्तेमाल करते हों | अंगूठा छाप भी एक पहुंचा हुआ फकीर/ तत्वज्ञानी हो सकता है | सत्संग करने के लिए पहले से ही साधु महात्मा या संत कैसे हो सकते हैं ? यह संभव ही नहीं |

 

अध्यात्म में सत्य की महिमा अपरंपार है | सत्यमार्ग पर चलकर कुछ भी आध्यात्मिक प्राप्त किया जा सकता है | सत्य वैसे भी ब्रह्म को ही स्थापित प्रमाणित करता है – कहते हैं न सत्यम शिवम सुंदरम | अगर इस जन्म में भगवान तक पहुंचना है/ ब्रह्म का साक्षात्कार करना है तो सत्यमार्ग पर चले बिना कुछ भी आध्यात्मिक हांसिल नहीं होगा |

 

लोग कुछ भी कहते रहें – दुनिया किसी भी ओर चले – ब्रह्मलीन होने के लिए ध्यान के रास्ते पर सत्संग करने की बड़ी महिमा है | वेदों में, उपनिषदों और भगवद गीता में सत्संग को आध्यात्मिक विकास की एक अनिवार्य क्रिया बताया गया है | जब भी मौका मिले हमें ऐसे लोगो के साथ सत्संग जरूर करना चाहिए जिनकी अध्यात्म में बेहद रुचि हो |

 

सत्संग करने से हमारे अंदर उमड़ते हजारों प्रश्नों के उत्तर स्वयं ही मिल जाएंगे | जब विचारों का आदान प्रदान होगा तो सत्य मार्ग पर आगे हम अवश्य बढ़ेंगे | जिसके तर्क सत्य के ज्यादा नजदीक होंगे उसे accept कर आगे बढ़ जाएंगे | और एक दिन पीछे छिपे मर्म तक पहुंच ही जाएंगे |

 

Power of Absolute Truth | अध्यात्म में सत्य का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani

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