सत्संग हृदय में सत् को दृढ़ कर असत् को कैसे मिटाता है ?


सत्संग में हमें क्या करना होता है ? मूलतः सत्संग धार्मिक और आध्यात्मिक लोगों की जागीर है – अध्यात्म की ज्यादा | सत्संग करने का मतलब हुआ जब आध्यात्मिक प्रवत्ति के कुछ साधक इकट्ठे होकर आपस में किसी भी आध्यात्मिक विषय पर गहन चिंतन करें | जब आपस में विचारों का आदान प्रदान होगा तो कुछ प्रश्नों का समाधान भी निकलेगा | हर प्रश्न जड़ से खत्म हो जाए – बस यही मकसद है सत्संग का|

 

प्रश्न जड़ से कब खत्म होते हैं ? जब हम उस प्रश्न के छिपे हुए मर्म तक पहुंच जाए | और किसी भी प्रश्न का मर्म तभी सामने आएगा जब हम सत्य का साथ लेंगे | अध्यात्म में बिना सत्य की राह पर चले कुछ भी, लेशमात्र भी हांसिल नहीं होता | तो जैसे जैसे हम सत्संग में आगे बढ़ते हैं तो सत दृढ़ होता रहता है और असत का साथ छूटता रहता है | हमारे अंदर स्थित प्रश्नों के उत्तर तभी मिलेंगे जब हम असत का साथ छोड़ सत के साथ आएंगे |

 

सत्य आखिर ब्रह्म को ही तो चिन्हित करता है | जहां सत्य है वहां भगवान की मौजूदगी आश्वस्त है | जिस दिन साधक का ब्रह्म से साक्षात्कार होता है उस दिन वह शुद्ध आत्मा हो जाता है यानि असत से हमेशा हमेशा के लिए पीछा छूट गया | यह असत ही तो है जो हमें अध्यात्म के रास्ते पर जाने से रोकता है | मेरी सत्य की राह पर चलने की तैयारी 5 वर्ष की आयु में ही दृढ़ हो गई थी | इसी कारण मैं अध्यात्म की राह पर बेरोकटोक चल सका |

 

आज के समय में भी अगर कोई साधक सत्यमार्ग पर चलने की ठान ले तो उसे इसी जीवन में ब्रह्म से मिलने से कोई भी रोक नहीं सकता | यह अटल सत्य है | दिक्कत बस यही आती है सत्य की राह पर हर समय चलें कैसे ? भौतिक जीवन में रोटिरोजी के लिए झूठ का सहारा लेना ही पड़ता है | कठिन है असंभव नहीं |

 

Power of Absolute Truth | अध्यात्म में सत्य का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani

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