आत्मा अनादि अमर है लेकिन अपने ब्रह्मांडीय सफर में अशुद्धियां ग्रहण कर लेती है | खुद शुद्ध हो नहीं सकती इसलिए शरीर धारण करती है | यह समुद्र मंथन ही है जिसको समझकर एक आध्यात्मिक साधक ध्यान में चिंतन के माध्यम से उतर जाता है और अंततः आत्मज्ञानी बन जन्म और मृत्यु के चक्रव्यूह से हमेशा के लिए बाहर निकल जाता है |
Samudra Manthan ki gatha | समुद्र मंथन की गाथा | Vijay Kumar Atma Jnani