समुद्र मंथन का अभिप्राय तथा इसके पीछे का दर्शन क्या है ?


जब से मानव सभ्यता अस्तित्व में आयी है ब्रह्म ने श्रुति के द्वारा ऋषियों को समुद्र मंथन की गाथा दी | भारतीय दर्शन शास्त्र कहते हैं मनुष्य के जीवन का लक्ष्य है जन्म और मृत्यु से आत्मा को हमेशा के लिए मुक्त कर देना | इसके लिए मनुष्य को तत्वज्ञान और फिर मोक्ष प्राप्त करना होगा | यह संभव हो पाता है कर्मों की पूर्ण निर्जरा करके |

 

बस इसी पूरे क्रम को समझाने के लिए समुद्र मंथन का दृष्टांत रचाया गया | समुद्र मंथन यानी हमारे अंदर आते विचारों के बीच घमासान युद्ध जो हर समय चलता रहता है | जो positive विचार हम अपने अंदर ग्रहण करते हैं वह देवता हैं और negative विचार राक्षस | इन्हीं के आपस में टकराने से अमृत और विष पैदा होता है |

 

आध्यात्मिक साधक अमृत को कुण्डलिनी में ऊर्ध्व कर देता है और विष को कंठ में रोक लेता है | कंठ में रोके विष के कारण तत्वज्ञानी को शिव/ नीलकंठी कहते हैं | शिव के गले में सर्प यानी कुण्डलिनी पूर्ण जागृत है | सागर मंथन की गाथा कहती है हमें negative विचारों से दूर रहना चाहिए, तभी तो ज्यादा अमृत उत्पन्न होगा और आध्यात्मिक उन्नति तेज होगी |

 

Samudra Manthan ki gatha | समुद्र मंथन की गाथा | Vijay Kumar Atma Jnani

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