समुद्र मंथन किन किनके बीच हुआ था ?


समुद्र मंथन देवों और दैत्यों के बीच हुआ था | आध्यात्मिक दृष्टि में देव कौन होते हैं और असुर कौन ? हर मनुष्य के अंदर हर समय सकारात्मक और नकारात्मक विचारों के बीच मंथन होता रहता है | तो देव हुए सकारात्मक विचार और दैत्य नकारात्मक विचार | जब सकारात्मक और नकारात्मक विचार आपस में गुत्थम गुत्था होते हैं तो मंथन में अमृत पैदा होता है और विष भी |

 

आध्यात्मिक साधक अमृत को कुण्डलिनी की ओर धकेल देता है और विष को कंठ में धारण करने की कोशिश करता है | इसी विष को कंठ में धारण करने के कारण शिव को नीलकंठी कहते हैं और तत्वज्ञान प्राप्त होते ही हर साधक शिव हो जाता है | शिव यानि गले में सर्प – जो दर्शाते हैं की साधक की कुण्डलिनी पूर्ण जागृत हो गई |

 

हम आध्यात्मिक हों या नहीं, समुद्र मंथन हर किसी के अंदर अविरल रूप से चलता रहता है | अगर हम सात्विक ज्यादा हैं तो अमृत ज्यादा पैदा होगा और भोग प्रवत्ति के गुलाम हैं तो विष ज्यादा बनेगा | यह हमारे ऊपर निर्भर है हम चाहते क्या हैं ? समुद्र मंथन के कारण जो विष पैदा होता है, अगर हम उसे कंठ में रोकने में असफल हो जाते हैं तो वह शरीर में फ़ैल हमें बीमार कर सकता है |

 

Samudra Manthan ki gatha | समुद्र मंथन की गाथा | Vijay Kumar Atma Jnani

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