समुद्र मंथन एक आध्यात्मिक गाथा है जिसके द्वारा मनुष्य को यह समझाने की कोशिश की गई है कि जीवन में मोक्ष पाने के लिए कैसे positive विचारों में व्याप्त होना पड़ेगा | साथ साथ अखंड ब्रह्मचर्य का पालन कर अमृत को कुण्डलिनी में ऊर्ध्व करना होगा – तभी चक्र जागृत होंगे और सहस्त्रार खुलेगा |
हर मनुष्य हर समय positive और negative विचार ग्रहण करता रहता है | समुद्र मंथन मनुष्य शरीर में हर क्षण होता रहता है | जब positive और negative विचार आपस में टकराते हैं तो मंथन होता है और अमृत पैदा होता है और विष भी | अमृत को हम कुण्डलिनी द्वारा उठा सकते हैं और विष को गले (कंठ) में रोक लेते हैं |
अमृत पान करके एक दिन हम तत्वज्ञानी बन सकते हैं और विष को कंठ में धारण करने के कारण नीलकंठी बन शिव कहलाएंगे | शिव के गले में पड़े सर्प यह दर्शाते हैं कि कुण्डलिनी पूर्ण जागृत है | हर आध्यात्मिक साधक को समुद्र मंथन की गाथा का मर्म समझ कर अध्यात्म में प्रगति करनी चाहिए | नकारात्मक विचार क्योंकि विष उत्पन्न होने का कारण बनेंगे इसीलिए हर साधक को हर समय सकारात्मक विचारों में व्याप्त रहना चाहिए |
हमारे शरीर में असमय जो बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं उसका कारण नकारात्मक विचारों का अवलोकन है | बात छोटी सी है – हमें सिर्फ सकारात्मक विचार अपने अंदर लाने हैं | ऐसा करने से मूलाधार में जो अमृत इकठ्ठा होगा उसे हम कुण्डलिनी में ऊर्ध्व करके शनै शनै कर्मों की निर्जरा कर सकेंगे | कर्मों की पूर्ण निर्जरा होते ही हम निर्विकल्प समाधि में स्थित हो जाएंगे | उसके बाद अगला मंजर ब्रह्म का साक्षात्कार ही होगा |
Samudra Manthan ki gatha | समुद्र मंथन की गाथा | Vijay Kumar Atma Jnani