लाचार ? पूरे ब्रह्मांड के सूर्य खंड में स्थित धरती मां की सबसे उच्च योनि में स्थापित मनुष्य अगर खुद को असहाय, गरीब या लाचार महसूस करे तो – हमें उस प्यारी सी लड़की को देखना चाहिए जिसके दोनों पांव कुछ दरिंदो के कारण ट्रेन के नीचे आने से कट गए और फिर उस धैर्यवान लड़की ने सोचा – बच गई तो किसी बड़े मंतव्य के लिए |
ठान लिया अब मैं दुनिया की सबसे ऊंची चोटी Mount Everest पर चढ़ूंगी और चढ़ गई | लाचार वो नहीं जिसे किसी चीज का अभाव है, लाचार वो होता है जो करोड़ों होते हुए भी कंगाली की जिंदगी जीता है | लाचार वो है जिसकी सोच छोटी है | अगर हम तड़फ रहे हैं, दुखों ने घेर रखा है, तो आप अकेले नहीं |
दुख जीवन में अगर पिछले जन्मों में किए negative कर्मों के कारण हैं तो ज़िम्मेदार और कोई नहीं, भगवान तो कतई नहीं | हां दुखों के बिना जीवन आगे कैसे बढ़ेगा | जब हम कर्मों की निर्जरा करते हैं तो दुख तो आयेंगे ही | जब हम सोने को उजालते हैं तो उसे आग में तपाते हैं, बस यही समय है हम दुख झेलते हैं | दुख और सुख के माध्यम से ही जीवन आगे बढ़ता है |
दुखों से पीछा छुड़ाना चाहते हैं तो अपनी सोच को positive करें | दूसरा अगर गलत है तब भी | या तो उसे माफ कर आगे निकल जाएं या उससे ज्यादा क्षमता अपने अंदर पैदा करें | दूसरे का फेंका कूड़ा अगर हम ग्रहण नहीं करेंगे तो वह उस के पास लौट जाएगा |
कोई गलत बोले तो पलट कर जवाब न दें | अपने काम में positivity के साथ व्यस्त रहें | एक दिन अच्छा समय खुद आपके दरवाज़े पर दस्तक देगा | भगवान पर विश्वास रखें | ५ वर्ष की आयु से ३७ वर्ष की आयु तक मेरे अंदर एक भी negative विचार नहीं आया | नतीज़ा ! ३ अगस्त १९९३ को ब्रह्म से २ १/२ घंटे का साक्षात्कार और मैं जीवन की आखिरी stage यानि ८४ लाखवी योनि पर स्थित हो गया |
Samudra Manthan ki gatha | समुद्र मंथन की गाथा | Vijay Kumar Atma Jnani