जिस दिन इंसान अपने अन्दर उमड़ती चाहतों को लगाम/ विराम खुद स्वयं की इच्छा से दे देगा, उसी दिन से वह अपने अंदर चिर शांति महसूस करने लगेगा | सारा द्वंद तो जड़ से खत्म हो गया | किसी के साथ competition नहीं | जितनी चादर उतने ही पैर पसारने हैं | जितना है वह भी ज्यादा लगने लगेगा |
जब तक होड़ है, दुख तभी तक है | मैंने जीवन में ऐसे संन्यासी भी देखे जो एक कमरे की साधनहीन कुटिया में बेहद प्रसन्न, बाहर से नहीं – अन्दर से | जब मैंने पूछा – इतने खुश नजर आ रहे हो तो कहने लगा प्रभु कृपा से सब कुछ (?) है, और सुबह शाम प्रभु का भजन कीर्तन ही तो करना है | यह साधु हिमाचल प्रदेश में पालमपुर में एक बेहद ऊंची पहाड़ी पर मिला था |
कोई भी इंसान जब अपनी जरूरतों को विराम दे देगा, उसी दिन से खुश रहने लगेगा, चाहे वह गृहस्थ हो, या अकेला |
How do you express Gratitude in words to God? भगवान की कृपा के प्रति कृतज्ञता | Vijay Kumar