जीवन में अगर ब्राह्म कठिनाइयां आती हैं तो हर इंसान उनसे लड़ सकता है लेकिन अगर अपने ही दुख देने पर उतर आए तो असहाय महसूस करते हैं | इस अवस्था में कोई करे भी तो क्या ? आपके अपने बेटा बेटी, पत्नी या पति, दादा दादी, नाना नानी, मामा मामी या ससुराल के लोग जब जुल्म करने पर उतारू हो जाएं तो क्या ?
इसी हालात को मद्देनजर रखते हुए ब्रह्म ने हमें गीता ज्ञान दिया | भगवद गीता में निहित अद्भुत ज्ञान सिर्फ और सिर्फ अपनों द्वारा दी गई परेशानियों से कैसे जूझा जाए, लड़ा जाए, उस रास्ते को प्रतिपादित करता है |
मोक्ष प्राप्ति के आखिरी चरण में जब साधक मोह माया के पाश में बंधा होता है और उसे कुछ सूझ नहीं रहा और अपने भी आपके भोलेपन का फायदा उठाना चाहते हैं तो महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत काव्य और उसमे निहित गीता ज्ञान ही हमें रास्ता सूझाता है | गीता ज्ञान प्राप्त करने के बाद ही अर्जुन अपनों से लड़ने के लिए तैयार हो पाया |
इसी को हम धर्मयुद्ध कहते हैं | जब अधर्म का दामन थामे हमारे अपने हम पर वार करें तो उस स्थिति से कैसे निपटना है, यह सिर्फ गीता हमें सिखाती है, रामायण और अन्य ग्रन्थ नहीं | अपनों से निपटना कोई छोटी बात नहीं | जिन्हें हमने अपने हाथों से पाला पोसा उनसे लड़े कैसे ?
अब ब्रह्म की बनाई दुनियां देखिए | जब हम अधर्म का दामन थामे अपनों से निपटते हैं तो मोह तो हमने त्याग ही दिया | तो मोक्ष प्राप्त करने में अब कठिनाई कैसी ? मोक्ष प्राप्त करने से पहले मोहमाया की कड़ी ही आखिरी जंजाल है जिसके पार हमें जाना है | जब अर्जुन कौरवों से जीत गया तो उसने अपने लिए मोक्ष का रास्ता भी प्रशस्त कर लिया |
महर्षि वेदव्यास और महाभारत महाकाव्य का आध्यात्मिक सच | Vijay Kumar Atma Jnani