स्वामी विवेकानंद जब अध्यात्म के गहरे सागर में उतरे तो भारत का अपार गौरवशाली आध्यात्मिक वैभव देख बेहद प्रसन्न हुए | धीरे धीरे उनके अंदर यह बात घर कर गई कि इस विशाल ज्ञान को दुनिया में फैलाना चाहिए | जब 1893 में विश्व धर्म संसद, Chicago में जाने का मौका मिला तो जहाज से जाने के पैसे नहीं थे | खैर एक रियासत के राजा ने यह बंदोबस्त कर दिया |
स्वामी विवेकानंद बड़ी उम्मीद से इस संसद में lecture के लिए पहुंचे कि वह वेदों, उपनिषदों और भगवद गीता के ज्ञान का पिटारा पाश्चात्य जगत के धर्म गुरुओं के सामने पेश करेंगे और वे इनकी झोली करोड़ों रुपयों से भर देंगे | लेक्चर तो सभी ने सराहा लेकिन झोली में तालियों कि गढ़गढ़ाहट के अलावा कुछ नहीं आया |
बेहद निराश स्वामी विवेकानंद वापस अपने वतन भारत लौटे | वे इस बात से उभर ही नहीं पाए कि ज्ञान की एवज में उन्हें पैसे क्यों नहीं मिले | कुछ समाजसेवा के कार्य सिर पर जो ले रखे थे | पैसों के अभाव में परेशान और हताश रहने लगे |
बाढ़ में नदी पार करते समय पैर में जख्म तो हो ही गया था, ऊपर से पाश्चात्य जगत का सांस्कृतिक नंगापन उन्हें बर्दाश्त नहीं हुआ और अंततः 1902 में स्वामी विवेकानंद ने अपना पार्थिव शरीर त्याग दिया (जीने की लालसा जो खत्म हो चुकी थी) | पिछले जन्म न सही अगले जन्म में स्वामी विवेकानंद भारत को सोने की चिड़िया बनाकर ही दम लेंगे |
भारत अखंड भारत कब तक बनेगा – 2032? Vijay Kumar Atma Jnani