आध्यात्मिक सफर की सबसे बड़ी गलती, या कहें सबसे बड़ा भ्रम क्या है – कि हमें वेदों से, उपनिषदों से और भगवद गीता से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना है | प्राप्त करना उसी sense में जैसे किताबी ज्ञान प्राप्त किया जाता है |
जब हम भौतिक जगत के ज्ञान/ विज्ञान को पढ़ते है तो कोशिश करते हैं उसे अपनी memory में स्टोर करने की, कि समय पड़ने पर उसे recollect किया जा सके | जो स्टूडेंट जितना याद रख सकता है उतना ही प्रतिभाशाली | बात समझकर स्टोर करने की है |
आध्यात्मिक जगत में स्थिति बिल्कुल अलग है | हम ज्ञान का इस्तेमाल करते हैं कर्मों की निर्जरा करने के लिए | चिंतन के द्वारा जब हम फाइनल निष्कर्ष पर पहुंचते हैं तो जो भी related ज्ञान था अब उसकी जरूरत हमेशा के लिए खत्म | जब प्रश्न हमेशा के लिए पिघल कर निरस्त हो गया तो related ज्ञान किस काम का ?
शाब्दिक अर्थ हुआ – कर्मों के अन्धकार को अस्त करने के लिए हमें ज्ञान के प्रकाश की जरूरत थी | जब कर्म की निर्जरा (मतलब कर्म जड़ से ध्वस्त) हो गई तो ज्ञान का प्रकाश किस काम का ? भौतिक जगत में सभी साधक पढ़ने में व्यस्त रहते हैं, लेकिन चिंतन में कोई नहीं उतरता | नतीजा – आध्यात्मिक उन्नति zero |
मुझे कितनी e-mails आती हैं भगवद गीता कई बार पढ़ ली, कुछ समझ नहीं आता | आयेगा कैसे – चिंतन में उतरना नहीं चाहते ? बात आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने की नहीं है, चिंतन के द्वारा आत्मसात् करने की है, तभी तो हम अंदर छिपे तत्व, मर्म तक पहुंचेंगे और कर्मों की निर्जरा होगी |
अध्यात्म में प्रगति सिर्फ और सिर्फ चिंतन के माध्यम से हो सकती है | ध्यान का मतलब ही चिंतन में उतरना है |
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