ब्रह्माण्ड क्यों और कैसे बना – यह तथ्य सिर्फ और सिर्फ एक आध्यात्मिक साधक ही समझ सकता है | और अध्यात्म विज्ञान से परे है – अध्यात्म वहां से शुरू होता है जहां विज्ञान का अंत हो जाता है | तो विज्ञान कि नज़रों से ब्रह्माण्ड की शुरआत और अंत दोनों समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है |
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति ब्रह्म से हुई और विज्ञान ब्रह्म के होने में विश्वास नहीं करता | करे भी कैसे क्योंकि उसे ठोस proof चाहिए ! अध्यात्म आस्था आधारित है | भारतीय परिवेश में ब्रह्म हैं – उनके होने में शक नहीं, न ही अविश्वास | कोई कुछ भी कहे – ब्रह्म के ऊपर श्रृद्धा हमेशा बनी रहेगी |
पूरी दुनिया एक तरफ – और सच्चा आध्यात्मिक साधक दूसरी तरफ | जब अध्यात्म में साधक ब्रह्म की खोज में चिंतन के माध्यम से उतरता है तो ज्ञात होता है ब्रह्म, ब्रह्माण्ड और प्रलय का नजदीक का नाता है | धीरे धीरे साधक को छिपे आध्यात्मिक तत्व समझ में आने लगते हैं |
फिर आम इंसान जो चिंतन में उतरना नहीं चाहता वह सिर्फ मन और बुद्धि के बल पर छिपे हुए गूढ़ तत्व को कैसे समझेगा ? ब्रह्म, ब्रह्माण्ड और प्रलय का जो छिपा हुआ मर्म है वह सिर्फ ध्यान/ चिंतन में डूबकर ही समझा जा सकता है | अध्यात्म के तत्व को समझने के लिए सत्यमार्ग पर चलना होगा जो कोई करना नहीं चाहता | यही कारण है अध्यात्म में बहुत कम लोग उतरते हैं |
आजकल हर इंसान अध्यात्म की बात करता मिल जाएगा – ये वही लोग हैं जिन्हें अध्यात्म शब्द का मतलब नहीं मालूम | पूरी 70~80 वर्ष की जिंदगी में अध्यात्म शब्द का मतलब न जान सके – वे क्या आध्यात्मिक विकास करेंगे ? मरते वक़्त गंगाजी में डुबकी या काशी में प्राण त्यागने से सोचेंगे मोक्ष मिल जाएगा | महावीर या बुद्ध ऐसे नहीं बनते !
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