सत्संग क्यों जरूरी है ?


सत्संग सिर्फ उन्हीं के साथ किया जा सकता है जिनकी सत्य में रुचि हो अन्यथा सत्संग करने के कोई मायने नहीं | पहले समय में यह प्रथा गुरुकुलों में स्थापित थी जहां कुछ शिष्य एक ही विषय पर साथ बैठकर विचार विमर्श करते थे यानि सत्संग करते थे | सत्संग करने के पीछे अभिप्राय होता था छिपे मर्म तक पहुंचना – सत्य तक पहुंचना |

 

सत्संग वो नहीं जो लोग आजकल करते हैं | सत्संग ज्यादा से ज्यादा 4 से 6 लोगों के बीच संभव है | और आज के समय में 2 से 3 लोग भी मिल जाएं तो बड़ी चीज है | अध्यात्म में रुचि रखने वाले लोग हैं हीं कहां ? मुझे 68 साल के जीवन में एक बार में 3 से ज्यादा लोग नहीं मिले जिनके साथ सत्संग किया जा सके और सच कहें तो 2 ही |

 

अध्यात्म में हमेशा ध्यान के माध्यम से उतरा जाता है और ध्यान अकेले में संभव है | वह तो जब हमारे अंदर काफी प्रश्न इकठ्ठे हो जाएं तो सत्संग कर प्रश्नों का उत्तर ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए | सत्संग में जिसका उत्तर सत्य के नजदीक है वह उत्तर सबको स्वीकार्य होता है | अध्यात्म में क्योंकि मैं (अहंकार) का कोई काम नहीं इसलिए कोई यह नहीं कह सकता कि मेरा उत्तर ही सही है |

 

Power of Absolute Truth | अध्यात्म में सत्य का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani

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