गुरुकुल परंपरा का महत्व – आध्यात्मिक परिवेश में |


प्राचीन काल में स्थित शिक्षा प्रदान करने की गुरुकुल परंपरा अपने आप में शिक्षा का उच्चतम साधन है | विश्व में गुरुकुल परंपरा से शीर्ष विद्या प्रदान करने की प्रणाली और कोई हो ही नहीं सकती | प्राचीन गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी विभिन्न कलाओं में पारंगत होता था | जीवन कैसे जीना चाहिए – यह सब गुरुकुल में तर्कसंगत तरीके से पढ़ाया जाता था | किसी भी तरह का ज्ञान प्राप्त करने के लिए गुरुकुल शिक्षा प्रणाली स्वयं में पूर्ण थी | गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के कारण ही भारत हमेशा से विश्व गुरु रहा है | गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के अन्तर्गत वेदों, उपनिषदों और भगवद गीता का ज्ञान भी सम्पूर्ण रूप में विद्यार्थियों को प्रदान किया जाता था |

 

पूरे जगत में शिक्षा की सबसे अधिक महत्वपूर्ण प्रणाली तर्क है | अगर कोई इसी जन्म में ब्रह्म तक पहुंचना चाहता है तो बिना तर्क का सहारा लिए अध्यात्म में, ध्यान में (चिंतन में) उतरना संभव नहीं | यही कारण है कि पूरे विश्व में आध्यात्मिक स्तर पर सब कोरे हैं – नितांत zero | गोरे हैं लेकिन आध्यात्मिक ज्ञान में बिल्कुल कोरे हैं | इसलिए पाश्चात्य जगत को अगर आध्यात्मिक उन्नति करनी है तो ध्यान चिंतन के द्वारा करना होगा | आने वाले कुछ ही वर्षों में भारत में फिर से गुरुकुल परंपरा की शुरुआत हो जाएगी और फिर यह प्रणाली पूरे विश्व में फ़ैल जाएगी | भविष्य में universities, colleges और schools का कोई अस्तित्व नहीं रह जाएगा |

 

2044 तक लगभग पूरी दुनियां की universities, colleges और schools हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे या कहिए बंद कर दिए जाएंगे | कारण – जब शिक्षा का एक बेहतर साधन उपलब्ध है तो universities, colleges और school की आवश्यकता कैसी ? आज के समय में Universities, Colleges और Schools सिर्फ नौकर पैदा करते हैं जबकि शिक्षा का यह अभिप्राय कभी नहीं होता | शिक्षा हमेशा अपने आप में पूर्ण होनी चाहिए – शिक्षा यानी मनुष्य जाति का संपूर्ण विकास – बाहर से भी और अन्दर से भी | किसी भी क्षण गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी स्वयं को नीची या ऊंची दृष्टि से नहीं देखता | वह हमेशा समभाव में जीता है |

 

मनुष्य का संपूर्ण विकास ही सही शिक्षा है और यह गुरुकुल परम्परा में ही संभव है |

 

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